कांग्रेस में बड़े बदलाव की तैयारी हो रही है। लगातार चुनावी हार के बाद नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा तेज हो गई है, और इस बार कांग्रेस हाईकमान दो कार्यकारी अध्यक्षों के फॉर्मूले पर गंभीरता से विचार कर रहा
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में सबसे बड़े बदलाव की तैयारी हो रही है। लगातार चुनावी हार के बाद नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा सरेआम तेज हो गई है, और इस बार कांग्रेस हाईकमान ने दो कार्यकारी अध्यक्षों के फॉर्मूले पर गंभीरता से विचार कर रहा है। रायपुर से लेकर दिल्ली तक इस मुद्दे पर मंथन हो रहा है। नए अध्यक्ष के ऐलान के साथ ही दो कार्यकारी अध्यक्ष की भी घोषणा की जा सकती है। या फिर कुछ समय बाद दो नामों के ऐलान की संभावना है। दो कार्यकारी अध्यक्षों की रणनीति: कौन होंगे दावेदार? चर्चा इस बात की भी हो रही है कि अगर टीएस सिंहदेव प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाते हैं, तो दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएंगे। एक आदिवासी समुदाय से और दूसरा OBC वर्ग से हो सकता है। इस फॉर्मूले के तहत जिन नामों पर विचार किया जा रहा है, उनमें आदिवासी वर्ग से इंद्र शाह मंडावी, फूलोदेवी नेताम, अनिला भेंडिया, लखेश्वर बघेल और अमरजीत भगत के नाम शामिल हैं। वहीं, ओबीसी वर्ग से उमेश पटेल, द्वारिकाधीश यादव और रामकुमार यादव के नाम प्रमुख रूप से चर्चा में हैं। इसके अलावा, मंत्री शिव डहरिया की सक्रियता भी संकेत दे रही है कि वे भी किसी महत्वपूर्ण भूमिका में आ सकते हैं। इन नेताओं की सक्रियता यह संकेत देती है कि कांग्रेस हाईकमान संतुलन बनाकर दोनों प्रमुख वर्गों को साधने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा भी कई ऐसे पूर्व विधायक हैं, जिनके नाम दिल्ली तक पहुंच चुके हैं। दो कार्यकारी अध्यक्ष: सियासी समीकरण क्या होंगे? अगर टीएस सिंहदेव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं, तो दो कार्यकारी अध्यक्षों का फॉर्मूला लागू होने की संभावना प्रबल हो जाती है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान को संतुलन बनाने के लिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों पर गंभीरता से विचार करना होगा। आदिवासी नेतृत्व को साधने की रणनीति टीएस सिंहदेव सवर्ण समुदाय से आते हैं, ऐसे में कांग्रेस को आदिवासी वर्ग को संतुलित करने के लिए कार्यकारी अध्यक्ष पद पर एक मजबूत आदिवासी नेता को नियुक्त करना होगा। ताकि, दीपक बैज को हटाए जाने के बाद किसी तरह का विरोध ना हो। इसके लिए जिन नामों की चर्चा हो रही है, उनमें प्रमुख रूप से फूलोदेवी नेताम, इंद्र शाह मंडावी, अनिला भेंडिया,अमरजीत भगत और लखेश्वर बघेल शामिल हैं। ओबीसी समुदाय को तवज्जो क्यों? प्रदेश में ओबीसी समुदाय भी एक बड़ा वोटबैंक है। कांग्रेस अगर सत्ता में वापसी चाहती है, तो इस वर्ग को भी मजबूत प्रतिनिधित्व देना जरूरी होगा। कार्यकारी अध्यक्ष के दूसरे पद पर किसी ओबीसी नेता की नियुक्ति से कांग्रेस को राजनीतिक संतुलन साधने में मदद मिलेगी। इस वर्ग से उमेश पटेल, द्वारिकाधीश यादव और रामकुमार यादव के नाम सामने आ रहे हैं। क्षेत्रीय संतुलन पर भी नजर टीएस सिंहदेव सरगुजा क्षेत्र से आते हैं, ऐसे में कार्यकारी अध्यक्षों के चयन में बस्तर और मैदानी क्षेत्रों को भी ध्यान में रखना होगा। अगर आदिवासी कार्यकारी अध्यक्ष बस्तर से चुना जाता है, तो ओबीसी चेहरा मैदानी क्षेत्र से लिया जा सकता है। इस फॉर्मूले से कांग्रेस सभी प्रमुख क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। आगे की रणनीति पर असर अगर यह फॉर्मूला सफल होता है, तो 2028 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अपनी सियासी रणनीति को और धार दे सकती है। आदिवासी और ओबीसी समीकरण को साधने से पार्टी को सत्ता में वापसी का मजबूत आधार मिल सकता है। हालांकि, अगर गलत संतुलन बनता है, तो पार्टी के अंदर असंतोष भी पनप सकता है। अध्यक्ष पद की दौड़ में टीएस आगे राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं में पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव का नाम सबसे प्रमुख रूप से उभरकर सामने आ रहा है। अंबिकापुर से लेकर दिल्ली तक उनके नाम पर मुहर लगाने की अटकलें तेज हो चुकी हैं। हालांकि, उनके खिलाफ पार्टी के भीतर एक अलग लॉबी सक्रिय हो गई है। कांग्रेस के कई आदिवासी नेता उन्हें रोकने के लिए ‘आदिवासी कार्ड’ खेल रहे हैं। पूर्व मंत्री अमरजीत भगत इस रणनीति के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभरे हैं। उन्होंने पहले ही आदिवासी नेतृत्व की मांग उठाई है। उनका कहना है कि यदि प्रदेश अध्यक्ष का पद किसी आदिवासी नेता से छीना जाता है, तो कम से कम कार्यकारी अध्यक्ष पद पर किसी आदिवासी नेता को मौका दिया जाना चाहिए।