हाई कोर्ट ने कहा-:माता और पिता की देखभाल बेटे की जिम्मेदारी, पत्नी के कहने पर अलग रहना संस्कृति नहीं

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20 अगस्त 2018 को उसने पति को कॉल कर बताया कि वह आज रायपुर में ही रुक रही है। पति ने पूछा कि वह कहां और किसके साथ रहेगी? इसका उसने जवाब नहीं दिया और अपना मोबाइल बंद कर दिया। पति ने इसकी जानकारी अपनी सास को दी तो उसने धमकी दी कि उस पर कोई प्रतिबंध लगाया तो झूठे आपराधिक मामले में फंसाकर जेल भिजवा देगी। इस व्यवहार से तंग आकर पति और उसके परिजनों ने 11 सितंबर 2018 को थाने में शिकायत की। थाने में काउंसिलिंग के दौरान पत्नी नहीं पहुंची और पति और उसके परिजनों के खिलाफ रायपुर में शिकायत दर्ज करवा दी। पत्नी के कहने पर रायपुर में रहा पर नहीं बदला व्यवहार
फैमिली कोर्ट में वैवाहिक संबंधों की बहाली के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। यहां पत्नी ने रायपुर में साथ रहने पर सहमति देते हुए समझौता किया। 22 अप्रैल 2019 से 5 मई 2019 तक दोनों एक कॉलोनी में किराये के मकान में रहे। पत्नी का व्यवहार इस दौरान पति के साथ ठीक नहीं था। 5 मई 2019 को वह मकान का दरवाजा बंद कर चली गई। पति का कॉल भी रिसीव नहीं किया। इसके बाद पति ने कोर्ट में तलाक की मांग करते हुए आवेदन प्रस्तुत किया। ससुराल में रहने को तैयार नहीं थी महिला
इधर, महिला ने सभी आरोपों से इनकार किया। कोर्ट ने भी पति के आवेदन को निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया है। फैसले में कहा है कि बगैर किसी उचित कारण के पति को अपने माता- पिता से अलग रहने के कहना उसके प्रति क्रूरता के समान है। स्पष्ट है कि वह ससुराल में रहने के लिए तैयार नहीं है। वर्ष 2019 से अलग रह रही है। उसने ससुराल लौटने का भी कोई प्रयास नहीं किया। हाई कोर्ट ने पति को महिला को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में दो माह के भीतर पांच लाख रुपए देने के आदेश दिए हैं।

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