1 जनवरी से नहीं होती नए साल की शुरुआत! 4000 साल पुराना दुनिया का सबसे पहला कैलेंडर, जानें कैसे होती है इसकी गणना

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आज 1 जनवरी 2025 है. हर बार नए साल का स्वागत जोर-शोर से किया जाता है और नया कैलेंडर घर में सज जाता है. नए साल पर क्या-क्या नया करना है, पहले ही तय कर लिया जाता है. नए साल में कब छुट्टियां प्लान करनी हैं, कब शादी तय करनी है, कब लॉन्ग वीकेंड आएगा, किस दिन बर्थडे या एनिवर्सरी होगी, हर चीज के लिए कैलेंडर को देखा जाता है. हम सभी की जिंदगी में यह बहुत अहमियत रखता है. 

कैलेंडर का चांद-सूरज से कनेक्शन
कैलेंडर दिन, हफ्ते, महीने और साल की जानकारी देता है. दुनिया में कई बार कैलेंडर बदले गए. लेकिन हर किसी की गणना चांद और सूरज को देखकर की गई. कैलेंडर kalendae शब्द से बना है जो रोमन कैलेंडर के हिसाब से हर महीने का पहला दिन होता है. इसका मतलब है कॉलिंग यानी बुलाना. यह अमावस के बाद निकलने वाले नए चांद से जुड़ा शब्द है. बाद में इस शब्द को अंग्रेजी ने अपनाया और कैलेंडर बन गया.

दुनिया का सबसे पुराना कैलेंडर
इतिहासकार अमरलोचन मानते हैं कि दुनिया का सबसे पहला कैलेंडर मेसोपोटामिया में 4 हजार साल पहले बना. सुमेरियन सभ्यता के कैलेंडर को भी पुराना माना जाता है. इस कैलेंडर में 12 महीने और 29 से 30 दिन होते थे. 2510 ईसा पूर्व में प्राचीन मिस्र में कैलेंडर बना जो चंद्रमा के हिसाब से था. इस कैलेंडर में नील नदी की स्थिति के हिसाब से 3 मौसम होते थे. दरअसल मिस्र में यह नदी ही जीवन का सहारा रही है. हर साल जून से सितंबर तक इस नदी में बाढ़ आती थी इसलिए इसे बाढ़ का महीना बताया गया. अक्टूबर से जनवरी संकट काल और फरवरी से मई फसल का मौसम होता था.  

रोम के कैलेंडर में 310 दिन?
प्राचीन रोम में जो कैलेंडर बना था वह मार्च से दिसंबर तक का था. इसके हिसाब से साल में 10 महीने ही होते थे. वहां के राजा नूमा पोपिलस ने लगभग 2600 साल पहले इस कैलेंडर को बदले का फैसला किया. उनका मानना था कि मार्च का महीना युद्ध के देवता मार्स पर रखा गया है जो ठीक नहीं है. इसलिए उन्होंने नई शुरुआत के देवता जानूस के नाम पर साल का पहला महीना जनवरी को बनाया. इस कैलेंडर में साल में केवल 310 दिन और 10 महीने ही थे. राजनीतिक उथल-पुथल के बाद रोम की सत्ता जूलियर सीजर के पास आ गई और उन्होंने कैलेंडर में 365 दिन जोड़े और फरवरी में 29 दिन करने का फैसला लिया.  

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हम ग्रेगोरियन कैलेंडर को मानते हैं
आज पूरी दुनिया जिस कैलेंडर को मानकर नया साल मनाती हैं, उसे ग्रेगोरियन कैलेंडर कहते हैं. इसकी शुरुआत 1528 में हुई. जूलियर सीजर के बने जूलियन कैलेंडर में कई खामियां थीं. ऐसे में रोम में मौजूद एक चर्च के पोप ग्रेगोरी ने ग्रेगोरियन कैलेंडर बनाया. इसमें 1 जनवरी से ही नया साल शुरू होता था लेकिन 1 साल की गणना 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड थी. जबकि जूलियन कैलेंडर में यह गणना 365 दिन और 6 घंटे की थी। इस कैलेंडर को सबसे पहले इटली ने अपनाया था. धीरे-धीरे यह पूरे यूरोप में अपनाया गया. 1752 में ब्रिटेन ने इस कैलेंडर को माना. भारत में ब्रिटिश हुकूमत 1608 में शुरू हुई लेकिन 1752  के बाद अंग्रेजों ने इस कैलेंडर को भारत में भी लागू कर दिया. 

हर कैलेंडर की गणना सूरज और चंद्रमा के चक्कर के हिसाब से की गई (Image-Canva)

कई देश 1 जनवरी को नहीं मानते न्यू ईयर
भारत में हिंदू समाज के लोग विक्रम संवत को मानते हैं. इस कैलेंडर के हिसाब से नया साल चैत्र महीने में नवरात्रों से शुरू होता है. इस बार 30 मार्च 2025 से विक्रम संवत 2082 शुरू हो रहा है. रूस और यूक्रेन जैसे देशों में नया साल 14 जनवरी से शुरू होता है. चीन का कैलेंडर चांद के हिसाब से चलता है. उनका न्यू ईयर 21 जनवरी से शुरू होता है. तुर्की, इराक और ईरान में 1 अप्रैल को न्यू ईयर होता है. साउथ कोरिया में 5 फरवरी को सल्लन पर्व मनाया जाता है. यह साल का पहला दिन होता है. थाईलैंड में अप्रैल का महीना न्यू ईयर माना जाता है. साल का पहला दिन हर देश के लिए खास होता है और इस दिन कोई ना कोई त्यौहार जरूर मनाया जाता है जैसे थाईलैंड में सोंगक्रान के दिन भगवान बुद्ध को पानी से नहलाया जाता है. कोरिया में सूप बनाया जाता है. भारत में घर पर गेहूं को बोया जाता है और जापान में घंटी बजाई जाती है. 

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सरकार बनाती है फिसकल कैलेंडर
यह कैलेंडर हर देश की सरकार अपने-अपने वित्त वर्ष को ध्यान में रखकर बनाती है. हर साल देश का बजट, टैक्स और पॉलिसी बनाई जाती हैं. अमेरिका में फिसकल कैलेंडर 1 अक्टूबर से शुरू होता है जो 30 सितंबर को खत्म होता है. इसी तरह भारत का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है और 31 मार्च को खत्म होता है. बिजनेस के लिहाज से भारत में व्यापारियों का वित्तीय वर्ष दिवाली से शुरू होता है.  

 

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