गांववाले बोले- ईसाई को दफनाने नहीं देंगे:बस्तर में 13 दिन से रखा पादरी का शव, SC बोला- सरकार-हाईकोर्ट समाधान नहीं कर पाए, ये दुखद

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बस्तर के दरभा निवासी रमेश बघेल का परिवार आदिवासी है। उनके पूर्वजों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। रमेश के पिता पादरी थे। 7 जनवरी को लंबी बीमारी के बाद उनकी मौत हो गई थी। परिवार ने अपने गांव चिंदवाड़ा के कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए सुरक्षित जगह पर उनका अंतिम संस्कार करने की तैयारी की। इसकी जानकारी होने पर गांव के लोगों ने विरोध कर दिया। गांव वालों ने कहा- किसी ईसाई व्यक्ति को गांव में दफनाने नहीं देंगे। चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या उसकी खुद की जमीन। अफसरों से मदद नहीं मिली, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की
रमेश बघेल ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए अफसरों से सुरक्षा और मदद मांगी थी। मदद नहीं मिलने पर वे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट पहुंचे। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा- गांव में ईसाइयों के लिए अलग कब्रिस्तान नहीं है। अगर अंतिम संस्कार गांव से 20-25 किलोमीटर की दूरी पर किया जाए तो आपत्ति नहीं होगी। इसके अलावा नजदीकी गांव करकापाल में ईसाइयों का अलग कब्रिस्तान है। वहां भी पादरी का शव दफनाया जा सकता है। इस पर हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट बोला- राज्य सरकार का जवाब आपत्तिजनक
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी.वी.नागरत्ना और जस्टिस सत्येश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा- आश्चर्य है कि शव 7 जनवरी से जगदलपुर के जिला अस्पताल के शवगृह में रखा हुआ है। राज्य सरकार निजी जमीन पर शव दफनाने की व्यवस्था नहीं कर पा रही है। क्योंकि इससे भूमि की पवित्रता पर सवाल उठाया गया है। सरकार के इस जवाब में एक मृत व्यक्ति की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा गया। हमें इस बात का भी दुख है कि राज्य सरकार के साथ ही हाईकोर्ट भी इस समस्या का हल नहीं कर सका। कोर्ट ने सवाल किया कि गांव में रहने वाले व्यक्ति को वहां क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इतने लंबे समय तक उन ईसाई आदिवासियों के खिलाफ कोई आपत्ति क्यों नहीं उठाई गई, जिन्हें दफनाया गया है।

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