National Card Playing Day: कभी पेड़ के पत्तों से खेले जाते थे ताश, फ्रांस में बदला इसका रूप, कसीनो में इससे क्यों लगाई जाती है बाजी?

खबर शेयर करें

 

किसी ने ताश का खेल कभी ना कभी खेला जरूर होगा. अक्सर लोग दिवाली पर या 31 दिसंबर को नए साल के जश्न के मौके पर कसीनो में ताश खेलते हैं. घर पर दोस्तों और परिवार के साथ इस खेल को खेलने का मजा ही अलग है. गांव में बड़े-बुजुर्ग चौपाल पर पेड़ों की छांव में अक्सर यह खेल खेलते दिख जाते होंगे. कुछ लोग इससे जुआ भी खेलते हैं. कोरोना के बाद यह गेम भी डिजिटल बन गया. 28 दिसंबर को National Card Playing Day होता है.  

पेड़ के पत्ते थे दुनिया के पहले प्लेइंग कार्ड
ताश खेलने की शुरुआत चीन में हुई थी. 9वीं शताब्दी में वहां तांग राजवंश का शासन था. तांग राजवंश के लेखक सू ई की लिखी किताब ‘Collection of Miscellanea at Duyang’ में बताया गया है कि चीनी राजा यिजोंग की बेटी टोंगचांग अपने ससुराल पक्ष के लोगों के साथ पेड़ के पत्तों से ताश का खेल खेला करती थीं.  इसे Leaf game कहा जाता था. तब इस पर कोई नंबर या चिन्ह नहीं हुआ करते थे. जब यह खेल यूरोप में पहुंचा तो लकड़ी के प्लेइंग कार्ड बनने लगे. यह काफी भारी होते थे. इसलिए ज्यादातर लोग इसे खेलना पसंद नहीं करते थे. इसके बाद कागज से ताश बनने लगे और यह खेल पूरी दुनिया में फैल गया. ताश का मौजूदा डिजाइन फ्रांस एजन ने 1745 में डिजाइन किया. 

इसे भी पढ़े..  छत्तीसगढ़ में कड़ाके की ठंड का दौर जारी है.

भारत में मुगलों ने शुरू किया यह खेल
इतिहासकार अमरजीव लोचन कहते हैं कि भारत में ताश खेलने का रिवाज मुगलों ने शुरू किया. 16वीं शताब्दी में बाबर के शासनकाल में ताश  खाली वक्त में खेले जाते थे. इसे गंजीफा कहा जाता था. यह पत्ते हाथों से बनाए जाते थे. धीरे-धीरे यह पत्ते गांव, शहर, कस्बों में मशहूर हो गए. साल 2000 से पहले ताश हर घर में दिख जाते थे. लोग रात को इसी खेल को खेला करते थे. दिवाली पर ताश खेलना आज भी शुभ माना जाता है.  

यूरोप में टैरो कार्ड से ताश खेले जाते थे (Image-Canva)

केवल अमीर लोग ही खेलते थे ताश
शुरुआत में यूरोप में हाथों से ताश के पत्ते बनते थे. हैंडीक्राफ्ट रंगबिरंगे डिजाइन बनने की वजह से यह बहुत महंगे थे. आम आदमी इसे नहीं खरीद सकता था इसलिए अमीर लोग ही ताश खेला करते थे. फ्रांस के शाही परिवार बाउल्स के लिए डिजाइन किए गए ताश के पत्ते दुनिया के सबसे महंगे प्लेइंग कार्ड हैं. इनकी कीमत 3 लाख रुपए है. हालांकि जब छपाई की मशीनों का आविष्कार हुआ तो ताश अच्छी संख्या में छपने लगे जिससे इनकी कीमत कम हो गई और यह आम लोगों की पहुंच में आ गए. 

एक जमाने में ताश थे कैलेंडर
ताश के एक पैक में 52 पत्ते होते हैं जिनसे कई तरह के खेल खेले जाते हैं जैसे मांग पत्ती, दुग्गी पे दुग्गी, फ्लैश, रम्मी, ब्लफ, कॉल ब्रेक, पोकर, कोट-पीस. ताश से जुआ भी खेला जाता है. इसमें 1 से 10 यानी इक्का से दहला तक होता है. साथ ही हुकुम, पान, चिड़ी, ईंट, गुलाम,रानी, राजा जैसे अलग-अलग चिन्हों के सेट होते हैं. जब कैलेंडर नहीं थे, तब लोग इनसे ही दिन की गणना करते थे. 365 दिनों में 52 हफ्ते होते हैं और ताश के 52 पत्ते इन्हीं दिनों को दिखाते हैं. चिड़ी, ईंट, पान और हुकुम 4 मौसमों को दिखाते हैं.  

इसे भी पढ़े..  दो दोस्तों की कारस्तानी: 10वीं पास लड़का, कभी था वेटर, बन गया करोड़पति, जीने लगा लग्जरी लाइफ, लुट गए गरीब

एयरलाइंस में मिला ताश खेलने का मौका
आज जब यात्री फ्लाइट में होते हैं तो वह मोबाइल, लैपटॉप या प्लेन में लगे टैबलेट पर मूवी या गाने सुनकर यात्रा करते हैं. आज यह गैजेट उनके फ्री टाइम में मनोरंजन का सहारा हैं लेकिन जब यह सब गैजेट नहीं आए थे, तब लोग प्लेन में ताश खेलते हुए यात्रा करते थे. अमेरिका की डेल्टा एयरलाइन्स ने इसकी शुरुआत की थी. एयर न्यूजीलैंड ने भी अपने प्लेइंग कार्ड्स छपवाए थे जिसे वह यात्रियों को खेलने को देते थे. यह चलन 1920 में शुरू हुआ जो 1970 तक चला लेकिन इसके बाद यात्रियों की इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही. 

अमेरिका के लॉस वेगस में हर साल 2.7 करोड़ ताश के डेक इस्तेमाल होते हैं (Image-Canva)

अमेरिका के सैनिकों के लिए बने खास तरह के ताश
ताश के पत्तों का इस्तेमाल युद्ध के मैदान पर भी किया गया. ताश सैनिकों के बीच सूचना देने का जरिया बने. मिलिट्री में इन्हें एजुकेशनल टूल की तरह समझा जाता है. दूसरे विश्व युद्ध में यूनाइटेड स्टेट्स प्लेइंग कार्ड कंपनी ने अमेरिका, ब्रिटिश, जर्मनी और जापान के एयरक्राफ्ट के चित्र बने ताश डिजाइन किए. इस पर मानचित्र भी बने थे. 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया तो सैनिकों को दुश्मन की पहचान करने के लिए ताश बांटे गए. इन्हें पर्सनैलिटी आइडेंटिफिकेशन प्लेइंग कार्ड्स नाम दिया गया. इन पत्तों पर सद्दाम हुसैन से जुड़े हाई पोजिशन के सभी सदस्यों के नाम और एड्रेस छपे थे.  

इसे भी पढ़े..  उस्ताद अल्लाउद्दीन ख़ान संगीत महाविद्यालय से सैकड़ों नेशनल-इंटरनेशनल टैलेंट, गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी नाम दर्ज !

 

ताश से जुआ खेला जाता है
भारत में सिक्किम, गोवा, दमन-दीव और नगालैंड में जुआ खेला गैर कानूनी नहीं है. यहां ताश से जुआ खेला जाता है. गोवा के कसीनो में ताश से ही बाजियां लगाई जाती हैं और हारी भी जाती हैं. ताश एक मार्केटिंग टूल है जो बाजी की कीमत तय करते हैं. नए साल के जश्न में कसीनों नई-नई स्कीम लाते हैं ताकि कस्टमर ज्यादा से ज्यादा आएं. जुआ खेलने का रिवाज बहुत पुराना है. जुए के अलावा ताश का इस्तेमाल जादूगर जादू दिखाने और आर्टिस्ट अपनी आर्ट दिखाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. 

Source link


खबर शेयर करें