अंबेडकर अस्पताल में भर्ती 3250 गर्भवतियों पर दो रिसर्च:तंबाकू और गुड़ाखू का सेवन करने वाली गर्भवतियों में 18% को समय से पहले लेबर पेन, 6.3%की प्री​मैच्योर डिलीवरी

खबर शेयर करें

सामान्य स्थिति में कोई भी गर्भवती ​37 से 40 हफ्ते में बच्चे को जन्म देती है। अगर, किसी महिला को 37 हफ्ते के पहले लेवर पैन होता है, और वह बच्चे को जन्म देती है तो इसे प्री​मैच्योर डिलीवरी कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, इनमें से एक तंबाकू या इससे बने उत्पादों का सेवन करना भी है। इस स्थिति में जन्म लेने वाले बच्चों की शारीरिक गतिविधियां कम होती हैं। वजन कम होता है। स्किन पतली होती है। प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ. रुचि वर्मा कहती हैं तंबाकू-गुड़ाखू से माताओं-बच्चों कैसे दूर रखा जाए,इस पर ठोस काम करनी की सख्त जरुरत है। नीलम (29)(बदला हुआ नाम) 6 साल से गुटखा खा रही है। उसने दूसरे बच्चे को जन्म दिया। नीलम खून की इतनी कमी थी कि उसे सिजेरियन के दौरान 3 यूनिट खून चढ़ाना पड़ा। बच्चा भी सामान्य से कम वजन का है। पार्टनर की स्मोकिंग का असर भी
गैट्स रिपोर्ट 2019 के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 39.8 प्रतिशत लोग तंबाकू का किसी न किसी रूप में सेवन करते थे। सरकार ने तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम को गंभीरता से लिया। बीते 4 साल में तंबाकू सेवनकर्ताओं की संख्या 11% घटकर 27.8% रह गई है। इनमें 72% पुरुष और 27.8% महिला हैं। ऐसे हुई रिसर्च: इसके चौंकाने वाले नतीजे पहली रिसर्च- मेडिकल कॉलेज के स्त्रीरोग, पीएसएम और माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग ने अपनी रिसर्च में 20 से 40 वर्षीय 7वें, 8वें, 9वें महीने की 1250 गर्भवतियों की लिस्टिंग की। इन्हें ऑब्जर्वेशन में रखा। फिर उन गर्भवतियों की अलग लिस्टिंग की, जो तंबाकू उत्पादों का सेवन करती हैं। इनकी संख्या 429 थी। फिर लेवर पैन से लेकर डिलीवरी तक को नोटिस किया गया। असर: 18% में समय से पहले लेवर पैन, 6.3% की समय से पहले डिलीवरी, 2.8% में खून की कमी। दूसरी रिसर्च- अंबेडकर अस्पताल के स्त्रीरोग विभाग की पीजी स्टूडेंट डॉ. सोनाली देबनाथ के मुताबिक हमने 2,000 गर्भवतियों को आब्जर्व किया। इनमें से 368 (18%) की तंबाकू या इसके उत्पादों की हिस्ट्री मिली। इनमें 308 (83.69%) तंबाकू-गुड़ाखू और इनमें भी 247 (80.2%) सिर्फ गुड़ाखू करती थीं। इस थिसिस रिपोर्ट में उल्लेख है कि गर्भपात भी हुए। प्री​मैच्योर डिलीवरी हुई, शिशु बेहत कमजोर थे। असर: 7.06% एनिमिक थी, 8% की समय के पहले थैली फट गई। 9.24% में समय से पहले प्रसव पीड़ा। यह रिपोर्ट कम्युनिटी को एक मैसेज है कि महिला हो या पुरुष हर किसी को किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहने की सख्त जरूरत है। रिसर्च इसलिए जरूरी है ताकि नई फाइंडिंग्स आएं और फिर उस पर आगे काम कर सकें। नवजात शिशु भी नशे से प्रभावित हैं, इस पर भी साइंटिफिक रिसर्च जारी है।
-डॉ. कमलेश जैन, राज्य नोडल अधिकारी, तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम

खबर शेयर करें
इसे भी पढ़े..  चिरायु योजना बनी बच्चों के लिए जीवनदायिनी