सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर, अपनी प्राचीनता, समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है

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सारंगढ़, छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर, अपनी प्राचीनता, समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह नगर न केवल अपनी ऐतिहासिक जड़ों के लिए जाना जाता है, बल्कि आधुनिक छत्तीसगढ़ के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

सारंगढ़ का नामकरण

सारंगढ़ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘सारंग‘ और ‘गढ़‘। ‘सारंग‘ का अर्थ बांस होता है, और ‘गढ़‘ का मतलब किला। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र में बांस के घने जंगलों की प्रचुरता के कारण इसे ‘सारंगढ़’ नाम दिया गया। यह नाम इस क्षेत्र की प्राचीनता और पर्यावरणीय समृद्धि को भी दर्शाता है।

प्राचीन इतिहास

सारंगढ़ का इतिहास पाषाण युग से जुड़ा हुआ है। यहां स्थित बम्हनदेई गुफा में पाषाण कालीन मानवों द्वारा निर्मित भित्ती चित्र और शैलचित्र के अवशेष मिले हैं। ये प्राचीन कला न केवल इस क्षेत्र की पुरातात्विक समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि यह स्थान प्रागैतिहासिक काल से मानव सभ्यता का केंद्र रहा है।

सारंगढ़ रियासत की स्थापना

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सारंगढ़ रियासत की स्थापना गोड़ वंश के राजा नरसिंह देव के शासनकाल में हुई। राजा नरसिंह देव ने 84 गांवों का सारंगढ़ परगना नरेन्द्र साय को सौंपा और उन्हें दीवान की उपाधि प्रदान की। नरेन्द्र साय ने सारंगढ़ नगर को अपनी राजधानी बनाया और इसे एक संगठित रियासत के रूप में विकसित किया।

ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता संग्राम

ब्रिटिश शासन के दौरान, सारंगढ़ रियासत ने अपनी अलग पहचान बनाई। रियासत के शासकों ने ब्रिटिश राज के साथ-साथ अपनी स्वायत्तता बनाए रखने का प्रयास किया। स्वतंत्रता संग्राम के समय, राजा नरेश चंद्र सिंह ने इस रियासत का भारत संघ में विलय किया। यह 1 जनवरी 1948 को हुआ। राजा नरेश चंद्र सिंह छत्तीसगढ़ के प्रमुख नेताओं में से एक थे और 1969 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

सारंगढ़ केवल ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसे सतनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास जी की ज्ञान स्थली माना जाता है। बाबा जी का संदेश “मनखे-मनखे एक समान” यहीं से फैला, जो सामाजिक समरसता का प्रतीक बना।

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आधुनिक सारंगढ़

सारंगढ़ अब छत्तीसगढ़ के नवगठित सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले का मुख्यालय है। यह क्षेत्र कृषि, वन उत्पाद और पारंपरिक उद्योगों में प्रगति कर रहा है। इसके अलावा, आधुनिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं ने इस क्षेत्र को और अधिक सशक्त बनाया है।

प्रमुख सांस्कृतिक आयोजन

सारंगढ़ में हर साल मनाया जाने वाला दशहरा पर्व इसकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इस दौरान ‘गढ़ विच्छेदन’ नामक अनूठी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें मिट्टी के शंकुनुमा आकृति पर चढ़ने की प्रतियोगिता होती है। यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है और इसे आज भी राज परिवार द्वारा आयोजित किया जाता है।

पुरातात्विक धरोहर

सारंगढ़ के आसपास कई पुरातात्विक स्थल हैं, जो इसकी ऐतिहासिक समृद्धि को और बढ़ाते हैं।

1. सिरोली डोगरी: यहां शैल चित्र और प्राचीन भित्ती चित्र पाए गए हैं।

2. कौश्लेश्वरी मंदिर: यह मंदिर कलचुरी और मराठा काल की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

3. बम्हनदेई गुफा: यह गुफा पाषाण काल की मानव सभ्यता के जीवन को दर्शाती है।

वर्तमान में सारंगढ़ का महत्व

सारंगढ़ अब छत्तीसगढ़ के विकास का केंद्र बन चुका है। नए जिलों के निर्माण के बाद, यह क्षेत्र प्रशासनिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गया है। सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई योजनाएं लागू की जा रही हैं।

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सारंगढ़ की विशेषताएं

आधुनिकता और परंपरा का संगम: यहां प्राचीन परंपराओं और आधुनिक जीवनशैली का सुंदर मेल देखने को मिलता है।

पर्यटन का केंद्र: ऐतिहासिक स्थल और प्राकृतिक सुंदरता इसे पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।

सामाजिक समरसता: बाबा गुरु घासीदास के उपदेशों का प्रभाव आज भी यहां के सामाजिक जीवन में झलकता है।

सारंगढ़: भविष्य की ओर

सारंगढ़ अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करते हुए आधुनिकता की ओर अग्रसर है। प्रशासनिक केंद्र बनने के बाद, यह क्षेत्र विकास के नए आयाम छू रहा है। शिक्षा, रोजगार और पर्यटन के क्षेत्र में नई संभावनाएं उभर रही हैं।

निष्कर्ष:
सारंगढ़ का इतिहास, उसकी संस्कृति और वर्तमान में उसकी प्रगति इसे छत्तीसगढ़ के सबसे अनोखे क्षेत्रों में से एक बनाती है। यह नगर परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम है, जो आने वाले समय में और भी ऊंचाइयों को छुएगा।

 


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