हरिद्वार का कलश और तांबे का इतना बड़ा डिब्बा नहीं देखा हो कभी, 141 साल पुराने बड़वानी रियासत में हैं अनोखे बर्तन
खरगोन: इतिहास की परतों को खोलने वाले अनमोल संग्रह हर किसी को आकर्षित करते हैं. मध्यप्रदेश के खरगोन में स्थित डॉ. बसंत सोनी के संग्रह में 141 साल पुराने बड़वानी रियासत के अनोखे बर्तन शामिल हैं, जो अपनी बेमिसाल नक्काशी और दुर्लभता के कारण खास महत्व रखते हैं. इन बर्तनों में तांबा, पीतल और कांसा जैसी धातुओं से बनी वस्तुएं शामिल हैं, जिन पर बड़वानी रियासत की मुहर लगी हुई है.
बड़वानी रियासत की विरासत: तांबे का डिब्बा और ऐतिहासिक बर्तन
डॉ. सोनी के संग्रह में एक बड़ा तांबे का डिब्बा शामिल है, जिसका वजन 4 किलोग्राम से अधिक है. इसे पुराने समय में अनाज, आभूषण या रोटियां रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. इस डिब्बे के साथ तीन अलग-अलग आकार के तांबे के बर्तन भी हैं, जो पान-सुपारी, लौंग और इलायची जैसी चीजों का वजन मापने के लिए उपयोग किए जाते थे. इन बर्तनों पर 1884 की बड़वानी रियासत की मुहर लगी हुई है.
इसके अलावा, पानी पीने के लिए उपयोगी एक छोटी सुरई (लौटा) भी इस संग्रह का हिस्सा है, जो रियासतकालीन संस्कृति की झलक देती है.
बेल्जियम ग्लास का दुर्लभ लैंप और हरिद्वार का कलश
डॉ. सोनी के संग्रह में बेल्जियम ग्लास का एक अनोखा लैंप भी है. इस लैंप की नक्काशी इतनी बारीकी से की गई है कि इसे देखकर हर कोई दंग रह जाता है.
संग्रह में हरिद्वार के खास कांसे के कलश भी शामिल हैं. इन पर सुंदर नक्काशी के साथ “हरिद्वार” और “जय गंगे” लिखा हुआ है. पुराने समय में लोग हरिद्वार से गंगा जल इन्हीं कलशों में भरकर अपने घर लाते थे.
इतिहास के संरक्षण का जुनून: 20 वर्षों का संग्रह
डॉ. बसंत सोनी, जो पेशे से ज्योतिषाचार्य हैं, पिछले 20 वर्षों से प्राचीन वस्तुओं के संग्रह में जुटे हैं. उनका कहना है कि पुराने राजघरानों और संग्रहालयों में इन वस्तुओं को देखकर उन्हें भी ऐसी दुर्लभ वस्तुओं को सहेजने की प्रेरणा मिली.
डॉ. सोनी का मानना है कि यह संग्रह केवल घर की शोभा बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम भी है. उनका उद्देश्य है कि ये मूल्यवान वस्तुएं कबाड़ में जाने के बजाय संरक्षित रहें.
भारत की ऐतिहासिक कला और परंपरा की झलक
बड़वानी रियासत के इन बर्तनों और अन्य वस्तुओं पर की गई नक्काशी भारतीय कला और परंपरा का अद्भुत उदाहरण है. तांबे, पीतल और कांसे की वस्तुएं, जिनमें रियासत की मुहरें लगी हैं, यह दिखाती हैं कि प्राचीन भारत में रोजमर्रा की चीजों को भी कला का रूप दिया जाता था.
अनमोल संग्रह, जो इतिहास को जीवंत बनाता है
डॉ. सोनी का यह संग्रह न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यह उन अनमोल धरोहरों का भी प्रतीक है, जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई को उजागर करती हैं. उनकी यह पहल नई पीढ़ी को भारत की गौरवशाली विरासत से जोड़ने में मदद करेगी.